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पितृपक्ष मेले में 12वें दिन इन तीन जगहों पर पिंडदान का विधान,महाभारत के बाद भीम ने भी यहां किया था पिंडदान. // LIVE NEWS 24

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संवाददाता- निरंजन कुमार, गया 
गया: बिहार के गया शहर में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. आज मेले का 13वां दिन और गया श्राद्ध का 12वां दिन है. इस अवसर पर भीम गया, गो प्रचार और गदा लोल नामक तीन प्रमुख पिंड वेदियों पर पिंडदान का विशेष विधान है.पितरों को मोक्ष की प्राप्ति: आश्विन कृष्ण द्वादशी तिथि होने के कारण ये वेदियां श्रद्धालुओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं. मान्यता है कि इन स्थानों पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे स्वर्गलोक को प्राप्त कर लेते हैं. इस बार मेला 16 दिनों तक आयोजित हो रहा है, जिसमें तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ उमड़ रही है.महाभारत के भीम ने किया था प्रथम पिंडदान: पितृपक्ष मेले की ये तीनों वेदियां धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई हैं. विशेष रूप से भीम गया वेदी का संबंध महाभारत युद्ध से है. कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के वीर योद्धा भीम अपने पितरों के निमित्त गया पहुंचे थे.
उन्होंने यहां पिंडदान का कर्मकांड किया, जिसमें अपने बाएं घुटने को मोड़कर पिंड अर्पित किया.यहां है भीम के घुटनो के निशान: आज भी भीमगया पिंड वेदी पर उनके घुटने का चिह्न स्पष्ट रूप से मौजूद है. यह स्थल पितरों को तृप्त करने के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है. भीम द्वारा किए गए इस कर्म से इन वेदियों का महत्व और बढ़ जाता है.गोप्रचार वेदी: ब्रह्मा के यज्ञ और विष्णु की गदा धोने का पौराणिक स्थान: गदा लोल पिंड वेदी भी इन तीनों में से एक प्रमुख स्थल है, जिसका जिक्र वायु पुराण और धर्म पुराण में मिलता है. पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु ने यहां हैती दैत्य का वध किया था. दैत्य को मारने के बाद उन्होंने अपनी गदा को गदालोल सरोवर में धोया था. तभी से यह स्थान गदालोल के नाम से प्रसिद्ध हो गया. इस वेदी पर पिंडदान करने से पितरों को विशेष लाभ होता है.ब्रह्मा के यज्ञ और कामधेनु दान की कथा:
गो प्रचार पिंड वेदी का संबंध भगवान ब्रह्मा से जुड़ा है, जो गया की मुख्य वेदियों में शुमार है. कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने यहां एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था. यज्ञ के समापन पर उन्होंने सवा लाख कामधेनु गायों को गयापाल पंडों को दान में दे दिया. यज्ञ के दौरान इन गायों को एक पर्वत पर रखा गया था, जिसे गोचर वेदी कहा जाता है.गो खुर वेदी है खास: गो प्रचार वेदी को गो खुर वेदी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि आज भी यहां कामधेनु गायों के खुरों (पैरों) के निशान दिखाई देते हैं. मान्यता है कि कभी इस स्थान के निचले हिस्से में दूध की नदी बहा करती थी, जो इसकी पवित्रता को दर्शाता हैआश्विन कृष्ण द्वादशी: पिंडदान के लिए विशेष तिथि: आज आश्विन कृष्ण द्वादशी तिथि होने के कारण भीम गया, गो प्रचार और गदा लोल वेदियों पर पिंडदान का विशेष महत्व है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर इन स्थानों पर कर्मकांड करने से पितरों को तत्काल मोक्ष प्राप्त होता है. श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि वे पूर्ण विधि-विधान के साथ पिंड अर्पित करें. ये वेदियां पितृ तर्पण के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं, जहां से पितर स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान कर लेते हैं.25 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों का आगमन: पितृपक्ष मेले में तीर्थयात्रियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. जिला प्रशासन के अनुसार, अब तक गया पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या 25 लाख से अधिक हो चुकी है. मेले के अंतिम दिनों में यह संख्या और बढ़ने की संभावना है. विभिन्न राज्यों से आए श्रद्धालु इन वेदियों पर पिंडदान के लिए उत्साहित हैं. प्रशासन ने सुरक्षा, स्वच्छता और यातायात की पूरी व्यवस्था की है, ताकि कोई भी यात्री परेशान न हो. गयापाल पंडा गजाधर लाल कटरियार ने बताया कि इन तीनों वेदियों भीम गया, गो प्रचार और गदा लोल पर पिंडदान का काफी महत्व है. धार्मिक ग्रंथों में इनका वर्णन पितृ मोक्ष के लिए सर्वोपरि बताया गया है. यहां कर्मकांड से न केवल पितरों को स्वर्ग प्राप्त होता है, बल्कि वंशजों को भी आशीर्वाद मिलता है.
तीर्थयात्री इस विश्वास के साथ यहां आते हैं कि उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलेगी. पितृपक्ष मेला के इस विशेष दिन पर सभी को इन वेदियों का दर्शन और पिंडदान अवश्य करना चाहिए, जो हिंदू धर्म की अमूल्य परंपरा को मजबूत करता है."आश्विन कृष्ण द्वादशी तिथि को भीम गया, गो प्रचार और गदा लोल में पिंड दान करना चाहिए. तीर्थ यात्री यहां पूरे विधि विधान के साथ पिंडदान का कर्मकांड करें. यहां इन वेदियो पर पिंडदान करने से पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो जाती है."-गजाधर लाल कटरियार, गयापाल पंडा