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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन, कल शाम 5 बजे आश्रम में ही दी जाएगी समाधि // LIVE NEWS24

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न्यूज डेस्क : हिंदुओं के सबसे बड़े धर्म गुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया है. 99 साल की उम्र में शंकराचार्य का निधन हुआ है. जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे. परमहंसी गंगा आश्रम झोतेश्वर जिला नरसिंहपुर में ली आज दोपहर 3.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. जानकारी के मुताबिक, सोमवार शाम 5 बजे आश्रम में ही उन्हें समाधि दी जाएगी. उनके पार्थिव शरीर को मणिदीप आश्रम से गंगा कुंड स्थल तक पालकी से ले जाया गया है. फिलहाल उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है. शंकराचार्य के अंतिम दर्शन के लिए लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो चुका है. यहां भारी संख्या में पुलिस बलों की तैनाती की गई है.

बता दें कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का बेंगलुरु में इलाज चल रहा था. कुछ ही दिन पहले ही वह आश्रम लौटे थे. हाल ही में तीजा के दिन स्वामी जी का 99वें जन्मदिन मनाया गया था. आजादी की लड़ाई में भाग लेकर शंकराचार्य जेल गए थे. राम मंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने लंबी कानून लड़ाई लड़ी थी. उनके निधन पर शोक की लहर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताया है. पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा, ‘द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं. ओम शांति!’
9 साल की उम्र में कर दिया था घर का त्याग
9 साल की छोटी सी उम्र में जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने घर का त्याग कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं. इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली. ये वो वक्त था जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई चल रही थी. देश में आंदोलन हो रहे थे. जब १९४२ में गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया तो ये भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए. उस वक्त इनकी आयु 19 साल की थी. इस उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में पहचाने जाने लगे थे. इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ महीने और अपने गृह राज्य मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी.
1981 में मिली शंकराचार्य की उपाधि
जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे. 1981 में इनको शंकराचार्य की उपाधि मिली. 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे. राजनीति में भी काफी सक्रीय थे. अक्सर तमाम मुद्दों में सरकार के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाते थे. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जब ईरान यात्रा पर थीं तो सुषमा ने अपना सिर ढक रखा था. चूंकि वहां पर हिजाब का चलन था इसलिए उनको भी ऐसा करना पड़ा था. शंकराचार्य ने इसका विरोध किया था.

तीज के दिन बनाया था अपना जन्मदिन
हरियाली तीज के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है. कुछ ही दिन पहले उनका जन्मदिन बीता है. कांग्रेस के तमान नेताओं ने उनके जन्मदिन पर बधाई दी थी. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था कि हमारे पूज्य गुरुदेव सनातन धर्म के ध्वजवाहक, अनन्त श्री विभूषित जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के प्राकट्य दिवस पर उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं. हम सबके प्रेरणा स्रोत महाराजश्री स्वस्थ्य रहें व दीर्घायु हों यही माता राज राजेश्वरी से प्रार्थना है.