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गया से 15 किलोमीटर दूर प्रेतशिला पर्वत पर दूसरे दिन अकाल मृत्यु से मरने वाले पूर्वजों को प्रेतशिला में सत्तू का किया पिंडदान, उमड़ी रही भीड़। // LIVE NEWS 24

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संवाददाता -निरंजन कुमार, गया
गया। शहर से 15 किलोमीटर दूर प्रेतशिला पर्वत और ब्रह्मकुंड सरोवर के आसपास देश विदेश के विभिन्न कोनों से आए पिंडदानयों की जबरदस्त भीड़ देखने को मिली है। हजारों हजार की संख्या में पिंडदानी प्रेतशिला और ब्रह्म कुंड सरोवर स्थल पर अपने पितरों का पिंडदान कर रहे हैं। जिला प्रशासन की ओर से एक आकलन के मुताबिक अब तक करीब डेढ़ लाख श्रद्धालु प्रेतशिला पहुंच चुके हैं. पितृपक्ष के दूसरे दिन यहां पिंडदान करने वालों में सबसे ज्यादा उन्हीं लोगों की संख्या है जो 17 दिवसीय पिंडदान करने गया जी आए है। वे इस महालया पर्व के तहत पिंडदान करते हैं। प्रेतशिला और ब्रह्मकुंड स्थान पर पिंडदान की अनुमति और आशीर्वाद देने वाले धामी पंडा होते है। विशेष महत्व है कि प्रेतशिला पर्वत गया से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस पर्वत के शिखर पर प्रेतशिला नाम की वेदी है. कहा जाता है कि अकाल मृत्‍यु से मरने वाले पूर्वजों का प्रेतशिला की वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान करने का विशेष महत्‍व है. इस पर्वत पर पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण करते हैं. ऐसा होने के बाद कष्‍टदायी योनियों में पूर्वजों को जन्‍म लेने की आवश्‍यकता नहीं पड़ती है. इस पर्वत की कुल ऊंचाई 876 फीट है. प्रेतशिला की वेदी पर पिंडदान करने के लिए लगभग 676 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं जिनकी अकाल मृत्यु होती है उनके यहां सूतक लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है. उसका सेवन पिंडदान करने के बाद ही किया जाता है. इसीलिए यहां लोग प्रेतशिला वेदी पर आकर सत्तू उड़ाते हैं और फिर प्रेत आत्माओं से आशीर्वाद व मंगलकामनाएं मांगते हैं. इस पर्वत पर धर्मशिला है जिस पर पिंडदानी ब्रह्मा जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर कहते है 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है इस धर्मशीला में एक दरार है उस दरार में सत्तू का एक कण जरूर जाना चाहिए. कहा जाता है कि ये दरार यमलोक तक जाता है. इस चट्टान के चारों तरफ 5 से 9 बार परिक्रमा करके सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है. प्रेतशिला में भगवान विष्णु की प्रतिमा है. पिंडदानी अकाल मृत्यु वाले लोग की तस्वीर विष्णु चरण में रखते हैं. और उनके मोक्ष की कामना करते हैं. मंदिर के पुजारी 6 माह तक तस्वीर की पूजा करते हैं और फिर उस तस्वीर को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. पितृ पक्ष के 15 दिन पितरों के मोक्ष के दिन माने जाते हैं. यही कारण है कि हर साल यहां तर्पण के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं लोगों का कहना है कि पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा है. रात्रि में 12 बजे के बाद प्रेत के भगवान आते हैं. पूरे विश्व मे सबसे पवित्र जगह यही है, इसलिए प्रेत यहां वास करते हैं. यहां कोई भी शाम 6 बजे के बाद नहीं रुकता है. पंडा भी 6 बजे के बाद अपने घर लौट जाते हैं. आत्‍माएं सूर्यास्‍त के बाद विशेष प्रकार की ध्‍वनि, छाया या फिर किसी और प्रकार से अपने होने का अहसास भी करावाती हैं.